वासुदेवशरण अग्रवाल का जीवन परिचय | Biography of Vasudevsharan Agrawal

 वासुदेवशरण अग्रवाल का जीवन परिचय | Biography of Vasudevsharan Agrawal



जीवन-परिचय

डॉ० वासुदेवशरण अग्रवाल का जन्म सन् 1904 ई० में मेरठ जिले के खेड़ा ग्राम में हुआ था। इनके माता-पिता लखनऊ में रहते थे इसीलिए उनका बाल्यकाल लखनऊ में ही व्यतीत हुआ। यही इन्होंने प्रारम्भिक शिक्षा । भी प्राप्त की। इन्होंने 'काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से एम० ए० की परीक्षा उत्तीर्ण लखनऊ विश्वविद्यालय ने 'पाणिनिकालीन भारत' शोध-प्रबन्ध पर इनको मी-एच० डी० की उपाधि से विभूषित किया। यहीं से इन्होने डी० लिट्० की उपाधि भी प्राप्त की। इन्होंने पालि, संस्कृत, अंग्रेजी आदि भाषाओं तथा प्राचीन भारतीय संस्कृति और पुरातत्त्व का गहन अध्ययन किया और इन क्षेत्रों में उच्चकोटि के विद्वान् माने जाने लगे। 

हिन्दी के इस प्रकाण्ड विद्वान् का सन् 1967 ई० में निधन हो गया


वासुदेव शरण अग्रवाल

वासुदेवशरण अग्रवाल का जीवन परिचय | Biography of Vasudevsharan Agrawal




जन्म

अगस्त, 1904
खेड़ामेरठ - उत्तर प्रदेश,भारत

मृत्यु

26 जुलाई, 1967

व्यवसाय

विद्वान तथा लेखक

राष्ट्रीयता

भारतीय

अवधि/काल

आधुनिक काल

साहित्यिक आन्दोलन

स्वतंत्रता के बाद दिल्ली में स्थापित राष्ट्रीय पुरातत्त्व संग्रहालय की स्थापना में इनका प्रमुख योगदान था।

उल्लेखनीय कार्य

आपने मथुरा संग्रहालय (उत्तर प्रदेश) के   संग्रहाध्यक्ष के रूप में भी अपनी सेवाएँ प्रदान की थीं।

 

साहित्यिक सेवाएँ 

डॉ० अग्रवाल लखनऊ और मथुरा के पुरातत्त्व संग्रहालयों में निरीक्षक, केन्द्रीय पुरातत्त्व विभाग' के संचालक और 'राष्ट्रीय संग्रहालय, दिल्ली के अध्यक्ष रहे हैं। कुछ समय तक वे 'काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में इण्डोलॉजी विभाग के अध्यक्ष भी रहे हैं|  डॉ० अग्रवाल ने मुख्य रूप से पुरातत्त्व को ही अपना प्रमुख विषय बनाया। वासुदेवशरण अग्रवाल ने प्रागैतिहासिक, वैदिक तथा पौराणिक साहित्य के मर्म का उद्घाटन किया और अपनी रचनाओं में संस्कृति और प्राचीन भारतीय इतिहास का प्रामाणिक रूप प्रस्तुत किया। वे अनुसन्धाता, निबन्धकार और सम्पादक के रूप में भी प्रतिष्ठित रहे। 


कृतियाँ  

डॉ० अग्रवाल ने निबन्ध-रचना, शोध और सम्पादन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किया है। उनकी प्रमुख रचनाएँ अग्रलिखित हैं-


(1) निबन्ध-संग्रह

  •  पृथिवी-पुत्र
  •  कला और संस्कृति
  •  कल्पवृक्ष
  •  भारत की मौलिक एकता
  •  माता भूमि 
  •  वाग्धारा 

(2) शोध

पाणिनिकालीन भारत।


(3) सम्पादन -

  •  जायसीकृत पद्मावत की संजीवनी व्याख्या, 
  •  बाणभट्ट के हर्षचरित का सांस्कृतिक अध्ययन। 

इसके अलावा इन्होंने पालि, प्राकृत और संस्कृत के ग्रन्थों का भी सम्पादन किया।


भाषा-शैली

वासुदेवशरण अग्रवाल की भाषा शुद्ध और परिष्कृत खड़ीबोली है, जिसमें व्यावहारिकता, सुबोधता और स्पष्टता सर्वत्र विद्यमान है। इन्होंने अपनी भाषा में अनेक देशज शब्दों का प्रयोग ज्यादा किया है, जिससे भाषा में सरलता और सुबोधता उत्पन्न हुई है। इनकी भाषा में उर्दू, अंग्रेजी आदि की शब्दावली, मुहावरों तथा लोकोक्तियों का प्रयोग प्रायः नहीं हुआ है। इस प्रकार इनकी प्रौढ़, संस्कृतनिष्ठ और प्रांजल भाषा में गम्भीरता के साथ सुबोधता, प्रवाह और लालित्य विद्यमान है। शैली के रूप में इन्होंने गवेषणात्मक, व्याख्यात्मक एवं उद्धरण शैलियों का प्रयोग प्रमुखता से किया है।


हिन्दी-साहित्य में स्थान

पुरातत्त्व-विशेषज्ञ डॉ० वासुदेवशरण अग्रवाल हिन्दी-साहित्य में पाण्डित्यपूर्ण एवं सुललित निबन्धकार के रूप में प्रसिद्ध हैं। पुरातत्त्व व अनुसन्धान के क्षेत्र में, उनकी समता कर पाना अत्यन्त कठिन है। उन्हें एक विद्वान् टीकाकार एवं साहित्यिक ग्रन्थों के कुशल सम्पादक के रूप में भी जाना जाता है। अपनी विवेचन-पद्धति की मौलिकता एवं विचारशीलता के कारण वे सदैव स्मरणीय रहेंगे।