सूरदास का जीवन परिचय। Surdas ka jeevan parichay

[प्रश्न: सूरदास का जन्म कब और कहाँ हुआ था? अथवा सूरदास को जन्मान्ध न मानने के पीछे विद्वान् क्या तर्क देते हैं? अथवा वल्लभाचार्य का सूरदास से क्या सम्बन्ध था और वे कहाँ रहते थे? अथवा सूरदास की मृत्यु कब और कहाँ हुई?]

सूरदास का जीवन परिचय। Surdas ka jeevan parichay



जीवन-परिचय-महाकवि सूरदास का जन्म 'रुनकता' नामक ग्राम में सन् 1478 ई० में पं० रामदास के घर हुआ था। पं० रामदास सारस्वत ब्राह्मण थे। कुछ विद्वान् ‘सीही' नामक स्थान को सूरदास का जन्म थल मानते हैं। सूरदासजी जन्मान्ध थे या नहीं, इस सम्बन्ध में भी अनेक मत हैं। कुछ लोगों का कहना है कि बाल-मनोवृत्तियों एवं मानव-स्वभाव का जैसा सूक्ष्म और सुन्दर वर्णन सूरदास ने किया है, वैसा कोई जन्मान्ध व्यक्ति कर ही नहीं सकता, इसलिए ऐसा प्रतीत होता है कि वे सम्भवतः बाद में अन्धे हुए होंगे।


सूरदासजी श्री वल्लभाचार्य के शिष्य थे। वे मथुरा के गऊघाट पर श्रीनाथजी के मन्दिर में रहते थे। सूरदास का विवाह भी हुआ था। विरक्त होने से पहले वे अपने परिवार के साथ ही रहा करते थे। पहले वे दीनता के पद गाया करते थे, किन्तु वल्लभाचार्यजी के सम्पर्क में आने के बाद वे कृष्णलीला का गान करने लगे। कहा जाता है कि एक बार मथुरा में सूरदासजी से तुलसी की भेंट हुई थी और धीरे-धीरे


दोनों में प्रेम-भाव बढ़ गया था। सूर से प्रभावित होकर ही तुलसीदास ने 'श्रीकृष्णगीतावली' की रचना की थी।

सूरदासजी की मृत्यु सन् 1583 ई० में गोवर्धन के पास 'पारसौली' ना ग्राम में हुई थी। मृत्यु के समय महाप्रभु वल्लभाचार्य के सुपुत्र विट्ठलनाथजी वहाँ । उपस्थित थे। अन्तिम समय में उन्होंने गुरु-वन्दना सम्बन्धी यह पद गाया था

भरोसो दृढ़ इन चरनन केरो।

श्रीबल्लभ नख-छन्द-छटा-बिनु सब जग माँझ अँधेरो। 

[प्रश्न : सूरदास भक्तिकाल की किस काव्यधारा के कवि थे? उनकी सबसे प्रसिद्ध काव्य-रचना का नाम लिखिए।
अथवा सूरदास की दो काव्य-रचनाओं के नाम बताइए।] 

कृतियाँ-कृष्ण भक्ति काव्यधारा के भक्त शिरोमणि सूरदास लगभग ने सवा-लाख पदों की रचना की थी। 'काशी नागरी प्रचारिणी सभा' की खोज तथा पुस्तकालय में सुरक्षित नामावली के अनुसार सूरदास के ग्रन्थों की संख्या 25 मानी जाती है, किन्तु उनके तीन ग्रन्थ ही उपलब्ध हुए हैं- 

  1. सूरसागर 
  2. सूरसारावली 
  3. साहित्य-लहरी


(1) सूरसागर- सूरसागर' सूरदास की एकमात्र प्रामाणिक कृति है। इसके सवा लाख पदों में से केवल 8-10 हजार पद ही उपलब्ध हो पाए हैं। सम्पूर्ण 'सूरसागर' एक गीतिकाव्य है। इसके पद तन्मयता के साथ गाए जाते हैं। 

(2) सूरसारावली-यह ग्रन्थ अभी तक विवादास्पद स्थिति में है, किन्तु कथावस्तु, भाव, भाषा, शैली और रचना की दृष्टि से नि:सन्देह यह सूरदास प्रामाणिक रचना है। इसमें 1,107 छन्द हैं। 


(3) साहित्य-लहरी-'साहित्य-लहरी' में सूरदास का संग्रह है। इसमें मुख्य रूप से नायिकाओं एवं अलंकारों की विवेचना की गई है। के 118 दृष्टकूट-पदों से कहीं-कहीं पर श्रीकृष्ण की बाललीला का वर्णन तथा एक-दो स्थलों पर महाभारत यों की कथा के अंशों की भी झलक है।


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