टिप्पण लेखन (Noting) की परिभाषा
किसी भी विचारधीन
पत्र या आवेदन पर उसके निष्पादन (Disposal) को सरल बनाने के लिए जो टिप्पणियाँ सरकारी
कार्यालयों में लिपकों, सहायकों तथा कार्यालय अधीक्षकों द्वारा लिखी
जाती है, उन्हें टिप्पण-लेखन कहते हैं।
इन टिप्पणों में
तीन बातें रहती हैं-
(1) उस पत्र से पूर्व
के पत्र आदि का सारांश
(2)
जिस प्रश्र पर
निर्णय किया जाता है, उसका विवरण या विश्लेषण और
(3)
उस सम्बन्ध में
क्या कार्रवाई की जाय, इस विषय में सुझाव और क्या आदेश दिये जायँ, इस विषय में भी सुझावों का उल्लेख।
अभिप्राय यह है कि
टिप्पण-लेखन में विचारधीन पश्र के बारे में वे सब बातें लिखी जाती हैं, जिनसे उस पश्र के सम्बन्ध में निर्णय करने और
आदेश देने में सुविधा होती है। उस विचारधीन पश्र का पुराना इतिहास क्या है ? उस सम्बन्ध में नियम क्या है ? सरकारी नीति क्या है ? इत्यादि सारी बातों का उल्लेख कर अन्त में यह
सुझाव देना चाहिए कि इस सम्बन्ध में अमुक प्रकार का निर्णय करना उचित होगा। इसके
बाद वह पत्र निर्णय करनेवाले उच्च अधिकारी के सामने रखा जायेगा। ऊपर दिये गये
निर्देशों के साथ लिखे गये टिप्पण को पढ़कर उस अधिकारी को निर्णय करने में आसानी
होगी।
टिप्पण के सम्बन्ध में कुछ विशिष्ठ बातें इस प्रकार हैं-
(1)
टिप्पण बहुत लम्बा
या विस्तृत नहीं होना चाहिए। उसे यथासम्भव संक्षिप्त और सुस्पष्ट होना चाहिए।
(2)
कोई भी टिप्पण
मूलपत्र (original
letter) पर नहीं लिखा जाना
चाहिए। उसके लिए कोई अन्य कागज या बफ-शीट का प्रयोग करना चाहिए।
(3)
टिप्पण में यदि
किसी पत्र का खण्डन करना हो, तो वह बहुत ही शिष्ट और संयत भाषा में किया जाना चाहिए और किसी भी दशा में
किसी प्रकार का व्यक्तिगत आरोप या आक्षेप नहीं किया जाना चाहिए।
(4)
यदि एक ही मामले में
कई बातों पर अलग-अलग आदेश लिए जाने की आवश्यकता हो तो उनमें से हर बात पर अलग-अलग
टिप्पण लिखना चाहिए।
(5)
टिप्पण लिखने के
बाद लिपिक या सहायक को नीचे बाई ओर अपना हस्ताक्षर करना चाहिए। दाई ओर का स्थान
उच्च अधिकारियों के हस्ताक्षर के लिए छोड़ देना चाहिए।
(6)
कार्यालय की ओर से
लिखे जा रहे टिप्पण में उन सभी बातों या तथ्यों का सही-सही उल्लेख होना चाहिए जो
उस पत्रावली के निस्तारण के लिए आवश्यक हों।
(7)
यथासम्भव एक विषय
पर कार्यालय की ओर से एक ही टिप्पण लिखा जाना चाहिए।
(8)
जहाँ तक सम्भव हो, टिप्पण इस ढंग से लिखा जाना चाहिए कि पत्रावली
में पत्र जिस क्रम से लगे हों, टिप्पण में भी उनका वही क्रम रहे।
(9)
टिप्पण सदा स्याही
से लिखे या टंकित होने चाहिए।
(10)
लिपिक, सहायक और कार्यालय अधीक्षक को कागज की बाई ओर
अपने नाम के प्रथमाक्षरों का ही प्रयोग करना चाहिए। उच्च अधिकारी को अपना पूरा नाम
लिखना पड़ता है।
(11)
टिप्पणों में ऐसे
शब्दों का प्रयोग कभी नहीं करना चाहिए, जिनके अर्थ समझने में कठिनाई हो।
टिप्पण लेखन का उदाहरण
मैसूर राज्य के एक
स्कूल प्रधानाध्यापक ने राज्यसभा सचिवालय के सचिव को पत्र लिखकर दिनांक 20 नवम्बर 1986 को होनेवाले उपवेशन में अध्यापकों के नेतृत्व में 950 छात्रों के साथ उपस्थित होने के लिए
प्रवेशपत्रों की व्यवस्था के सन्दर्भ में प्रार्थनापत्र लिखा। उस कार्यालय के
लिपिक ने निम्नलिखित टिप्पण लिखा।-
प्राप्त
पत्रसंख्या 8, पृष्ठांक 9 ।
टिप्पण- यह पत्र मराठी विद्यालय, गुलवर्गा, मैसूर राज्य के प्रधानाध्यापक ने भेजा है। इसमें प्रार्थना की गयी है कि उक्त
विद्यालय के 950
छात्रों था 5 अध्यापकों के लिए राज्यसभा के दिनांक 20 नवम्बर 1986को होनेवाले उपवेशन में उपस्थित होने के लिए आवश्यक प्रवेशपत्रों की व्यवस्था
की जाय।
प्रवेशपत्र-वितरण-सम्बन्धी
विनियम-संख्या 90 के अधीन हम उक्त प्रार्थना को स्वीकार कर सकते
है। किन्तु हमें उक्त विद्यालय के प्रधानाध्यापक को यह सूचित करना होगा कि हमारी
दर्शक दीर्घा (visitors
gallery) में स्थान अत्यन्त
सीमित है, अतः एक साथ केवल 25 छात्र ही दीर्घा में उपस्थितरह सकेंगे। इसके
लिए इन छात्रों को 25-25
के 6 समूहों में विभक्त होकर ही दीर्घा में जाना
होगा। हमें प्रार्थी को यह भी सूचित करना होगा कि जिन छात्रों के लिए
प्रवेश-पत्रों की प्रार्थना की गयी है उनमे से प्रत्येक का नाम, पिता का नाम, स्थायी पता तथा दिल्ली में ठहरने का पता इत्यादि की सूचना प्राप्त होने पर ही
प्रवेशपत्र जारी किये जा सकते है।
साथ ही, प्रत्येक छात्र के लिए पृथक प्रवेशपत्र जारी
करने के स्थान पर यदि हम 25-25
के समूह के नाम
एक-एक प्रवेशपत्र बना दें, तो इससे कार्य में अधिक सुविधा होगी।
आदेशार्थ निवेदित
डी० रा०
30-10-1986
अवरसचिव: मैंने आलेख में कुछ परिवर्तन कर दिये है। टंकित
आलेख प्रेषित करें।
शिवराम
30-10-1986